Thursday, December 23, 2010

अल्लाह की याद का माह मुहर्रम

अल्लाह की याद का माह मुहर्रम
मुहर्रम इस्लाम धर्म में विश्वास करने वाले लोगों का एक प्रमुख त्यौहार है.
मुस्लिम धर्म में इस माह की बहुत विशेषता और महत्व है.
सन् 680 में इसी माह में कर्बला नामक स्थान मे एक धर्म युद्ध हुआ था, जो पैगम्बर हजरत मुहम्म्द के नाती तथा अधर्मी यजीद (पुत्र माविया पुत्र अबुसुफियान पुत्र उमेय्या) के बीच हुआ.
बताते हैं कि सन् 60 हिजरी को यजीद इस्लाम धर्म का खलीफा बन बैठा. सन् 61 हिजरी से उसके अत्याचार बढ़ने लगे.
उसने मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन से अपने कुशासन के लिए समर्थन मांगा और जब इमाम हुसैन ने इससे इनकार कर दिया तो उसने इमाम हुसैन को कत्ल करने का फरमान जारी कर दिया.
इमाम हुसैन मदीना से सपरिवार कुफा के लिए निकल पड़े लेकिन रास्ते में यजीदी षडयंत्र के कारण उन्हें कर्बला के मैदान में ही रोक लिया गया.
तब हुसैन साहब ने यह इच्छा प्रकट की कि मुझे हिंदुस्तान चले जाने दो, ताकि शांति और अमन कायम रहे. पर यजीद को अपनी सत्ता का सत्यापन रसूल के पुत्र समान नाती से कराना था, ताकि वह हर गलत काम निर्विरोध रूप से कर सके.
दूसरी तरफ इमाम हुसैन सत्य और अहिंसा के पुजारी थे. उन्होंने यजीद की बात नहीं मानी. करबला की जंग में एक तरफ 72 (शिया मत के अनुसार 123 यानी 72 मर्द-औरतें और 51 बच्चे शामिल थे) और दूसरी तरफ 40,000 की सेना थी.
हजरत हुसैन की फौज के कमांडर अब्बास इब्ने अली थे। उधर यजीदी फौज की कमान उमर इब्ने सअद के हाथों में थी.
इस धर्म युद्ध में वास्तविक जीत हज़रत इमाम हुसैन की हुई। प‍र जाहिरी तौर पर यजीद ने हज़रत इमाम हुसैन और उनके सभी 72 साथियों को शहीद कर दिया था. जिसमें उनके छह महीने की उम्र के पुत्र हज़रत अली असग़र भी शामिल थे.
तभी से तमाम दुनिया के न सिर्फ़ मुसलमान बल्कि दूसरी क़ौमों के लोग भी इस महीने में इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत का ग़म मनाकर उनकी याद करते हैं.
आशूरे के दिन यानी 10 मुहर्रम को एक ऐसी घटना हुई थी, जिसका विश्व इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है.
तीन दिन के भूखे प्यासे शहीद हुए, इन लोगों की याद में लोग 10 मुहर्रम को फाका (भूखे रहना) रहते हैं. इस दिन जगह-जगह पानी के प्याऊ और शरबत की शबील लगाई जाती है.
इराक स्थित कर्बला में हुई यह घटना दरअसल सत्य के लिए जान न्योछावर कर देने की जिंदा मिसाल है. करबला, इराक की राजधानी बगदाद से 100 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में एक छोटा-सा कस्बा है.
इस घटना में हजरत मुहम्मद के नवासे (नाती) हजरत हुसैन को शहीद कर दिया गया था. कर्बला की घटना बड़ी वीभत्स और निंदनीय है।
इमाम और उनकी शहादत के बाद सिर्फ उनके एक पुत्र हजरत इमाम जै़नुलआबेदीन, जो कि बीमारी के कारण युद्ध मे भाग न ले सके थे बचे.
यजीद का नाम दुनिया से आज ख़त्म हो चुका है. कोई भी मुसलमान और इस्लाम पर आस्था रखने वाला शख्स अपने बेटे का नाम यजीद नहीं रखता.
जबकी दुनिया में अपने बच्चों का नाम हज़रत हुसैन और उनके शहीद साथियों के नाम पर रखने वाले अधिक हैं.
यजीद कि नस्लों का कुछ पता नहीं पर इमाम हुसैन की औलादें जो सादात कहलाती हैं दुनियाभर में फैली हुयी हैं. जो इमाम जेनुलाबेदीन से चली.
पूरे विश्व में कर्बला के इन्हीं शहीदों की याद में मुहर्रम मनाया जाता है. मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है.
10 मुहर्रम को यौमे आशूरा कहा जाता है. उसके बाद से यह दिन कर्बला के शहीदों की यादगार मनाने का दिन बन गया.
मुहर्रम का महीना शुरू होते ही मजलिसों (शोक सभाओं) का सिलसिला शुरू हो जाता है. इमामबाड़ा सजाया जाता है.
भारतीय परंपरा में हिंदू, मुसलमान और सिख सभी कर्बला के शहीदों की याद मनाते हैं

2 comments:

  1. आपको पढकर बहुत अच्‍छा लगा .. इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका सवागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  2. शानदार पेशकश।

    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
    सम्पादक-प्रेसपालिका (जयपुर से प्रकाशित हिंदी पाक्षिक)एवं
    राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    0141-2222225 (सायं 7 सम 8 बजे)
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